Tuesday 25 December 2012

મસ્તક નહીં ઝૂકેગા - અટલ બિહારી વાજપેઇ

આજે ભારતના પૂર્વ વડાપ્રધાન અટલ બિહારી વાજપેઇનો જન્મદિવસ છે. કાજળકોટડીમાં રહેવું અને કાજળના ડાઘ ન લાગે તેનું શ્રેષ્ઠ ઉદાહર અટલજી છે. રાજકારણમાં ૬ દાયકા જેટલો લાંબો સમય વિતાવ્યા છતાં આજે તેમનું ચારિત્ર્ય નિષ્કલંક રહ્યું છે. તેમના સૌજન્યથી તેમણે પોતાના વિરોધીઓના મન જીતેલા છે. આવા વાજપેઇ જેવાં યુગપુરુષ ભારતનું નેતૃત્વ કરતાં હતાં એ ભારત માટે ધન્ય અવસર હતો. આજે તેમના જન્મદિવસે તેમનાં આરોગ્યપ્રદ લાંબા જીવન માટે પ્રાર્થના કરીયે.

વાજપેઇજી એક ઉત્તમ કવિ અને તેટલાજ સારા વક્તા છે. તેમની કવિતા, તેમના જ મુખે સાંભળીયે.



एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा ।

अगणित बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता ।
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता ।

इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिनगारी का खेल बुरा होता है ।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है ।

अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ।
ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।

पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई ।
अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं, माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई ?

अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो ।
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से तुम बच लोगे यह मत समझो ।

धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो ।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो ।

जब तक गंगा की धार, सिंधु मे ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन यौवन अशेष ।

अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध, काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा ।

( શબ્દો -  કાલ)

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